आधी रात गए जब प्रारथ विला लौटा तो लगभग सब सो चुके थे। वो और दिशांत किचन एरिया में पहुंचें तो पूजा बैठी मिली!
“आप आ गए भाई! मैं डिनर यहीं लगा दूं या डायनिंग हॉल में?” पूजा ने उठते हुए पूछा।
“कृशा ने कुछ खाया?” प्रारथ ने पूछा क्योंकि उसने पूछा को फ़ोन कर कृशा को डिनर देने का कह दिया था।
“जी नहीं भाई! मैंने कहा भी पर उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया।” पूजा ने बताया।
“एक प्लेट में सब रखो और तुम भी जाकर आराम कर लो…मैं और दिशांत साथ खा लेंगे।” प्रारथ ने कहा तो पूजा ने झटपट प्लेट तैयार की और प्रारथ को थमाकर ख़ुद भी चली गई।
“मैं भी साथ चलूं? क्योंकि तेरी ये सपाट शक्ल देखकर तो भाभी का पारा और भी चढ़ जाएगा..” दिशांत ने मसखरी करते हुए कहा तो प्रारथ ने बदले में उसे घूरा। दिशांत ने अपनी एक आंख दबा दी। प्रारथ ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई तो कृशा नदारद थी। वो झट से अंदर आया तो वो नज़ारा देखकर चौंक उठा! कृशा बेड पर सिर टिकाए फर्श पर बैठे-बैठे ही सो चुकी थी।
“यार! भाभी बिना खाए-पिए ही सो गईं?” दिशांत ने खीझते हुए कहा। प्रारथ ने असहाय भाव से अपने कंधे उचका दिए।
“धीरे-धीरे वो डेविल पास आया…प्रिंसेज डर के मारे झाड़ियों में दुबकती जा रही थी और फ़िर! अचानक से डेविल ने अपने भयानक पंजों से झाड़ियां ही उखाड़ फेंकी! प्रिंसेज डर से चीख पड़ी और डेविल उसकी तरफ़ बढ़ गया.. प्रिंसेज डरते हुए फ़िर चीखी..आआआ..” दिशांत, विधा के कान में बकायदा बनावटी अंदाज़ में आहिस्ते से बोला तो कृशा चौंकते हुए उठ बैठी।
“डे..विल? कहां है? कौन है?” वो हकबकाई सी इधर-उधर देखने लगी। उसकी नज़र सामने प्लेट लिए खड़े प्रारथ पर पड़ी। वो तपाक से बोली,”जो भी हो पर वो डेविल इस बीस्ट से तो ज़्यादा ही अच्छा था।” यह सुनते ही दिशांत की हंसी छूट गई जबकि प्रारथ उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगा।
“अब अगर नींद पूरी हो गई हो तो खाना भी खा लो वरना मुझसे लड़ने की एनर्जी कहां से मिलेगी?” प्रारथ ने चिढ़ते हुए कहा।
“मुझे कुछ नहीं खाना..” कृशा ने मुंह बिचकाया।
“क्यों नहीं खाना? अब तक तुमने ढंग से कुछ भी नहीं खाया भाभी?” दिशांत एकाएक बोल पड़ा तो कृशा उसे अनिश्चितता से घूरने लगी।
“आई मीन! मुझे भाई ही समझ लो..” दिशांत ने अपनी फिसली जुबान को दोबारा ठीक करते हुए कहा।
कृशा को याद आया कि दिशांत प्रारथ का जिगरी दोस्त होते हुए भी उसकी कितनी मदद कर रहा था। कृशा चुपचाप उठकर वाशरूम की तरफ़ चलीं गई। दिशांत ने रौब से अपनी शर्ट की कॉलर ऊपर की तो प्रारथ बड़बड़ाता हुआ नीचे चला गया। हाथ-मुंह धोकर कृशा ने प्लेट उठाई और वही नीचे बैठकर खाने लगी। उसे सच में बहुत भूख लगी थी। दिशांत अब नीचे आ गया। दोनों दोस्त एक-साथ बैठकर डिनर करने लगे। कुछ देर बाद कृशा भी नीचे आ गई। दोनों ने हैरानी से उसे देखा तो वह प्रारथ को घूरते हुए बोली,”दरवाज़ा लॉक करना भूल गए थे! सोचा याद दिला दूं!” प्रारथ भौंचक्का सा उसे घूरता रहा।
“दिशांत…मेरी थोड़ी हेल्प कर दोगे?” कृशा ने दिशांत से कहा तो वो झट से उसके सामने हाज़िर हो गया।
“आपका हुक्म सर आंखों पर भाभी!” दिशांत ने भाभी शब्द पर ज़ोर देकर कहा तो कृशा ने उसे घूरा।
“एक सोफ़ा मेरे कमरे में रखवा दो क्योंकि मैं तुम्हारे भाई के साथ तो नहीं सो सकती न!” वो प्रारथ को अजीब नज़रों से घूरते हुए बोली।
“हर बार मुझे विलेन बनाने की क्या ज़रूरत है? ये तुम्हारी मर्ज़ी है समझ आई?” वो भावहीन सा बोला और सीधे अपने कमरे में चला गया।
“ये हमेशा ऐसे ही रूड होकर बात करता है?” कृशा ने दिशांत से पूछा।
“नहीं! पर अपने मन की बात कहें भी किससे? समझने वाला भी तो चाहिए न!” दिशांत ने कहा तो कृशा किचन से बाहर निकल गई। दोनों ने बड़ी मशक्कत से कमरे में एक सोफ़ा रखवाया। प्रारथ चुपचाप बेड पर लेट गया था। कृशा ने अपना बिस्तर सोफे पर ही लगाया। कुछ देर बाद वो सो गई और प्रारथ ने अपनी बंद आंखें खोलीं। उसकी निगाह अनायास ही कृशा पर चलीं गईं। कितनी सुकून भरी नींद में गुम थी वो! प्रारथ ने कड़वाहट से मुंह फेर लिया और कुछ सोचने लगा..
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ये अगला दिन था। जब कृशा ने अपनी आंखें खोली और बेड पर नज़र दौड़ाई तो प्रारथ गायब था। वो अंगड़ाई लेते हुए उठी और बालकनी में आकर खड़ी हो गई। अचानक ही नीचे देखकर उसकी आंखें हैरानी से फ़ैल गईं। वो प्रारथ था जिसके हाथों में गन थी। सामने ही कोई आदमी खड़ा था जो दोनों हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहा था। कृशा डर से कांप गई।
“ज़ुबान खोलो कि उन लड़कियों को कहां लेकर जा रहे थे तुम लोग?” प्रारथ ने गुस्से में उसके जबड़े कसकर भींच लिए और किचकिचाते हुए बोला।
“माफ़ कर दो साहब..वो..वो तो कपूर साहब ने उन लड़कियों को उनके फार्म-हाउस से ट्रक में भरवाने का बंदोबस्त किया था!” वो आदमी डर से बोल पड़ा।
“वो लड़कियां भी इंसान होती हैं जैसे तेरी बहन और बीवी है..कसाई कहीं का! उस कपूर को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा।” कहते हुए उसने उसे पीछे की तरफ़ धकेल दिया और हाथ झटकने लगा। वो आदमी हाथ जोड़ता हुआ बाहर की तरफ़ भागा और दोनों गार्ड उसे बाहर ले गए। दिशांत भी उसके साथ ही खड़ा था। अचानक ही दिशांत की नज़र बालकनी पर खड़ी जहां अभी कृशा खड़ी थी। वो चिहुंक उठा।
“भाई…वो कृशा! वो तुझे ग़लत समझ रही है जबकि ये सब तो उसके बाप का किया कराया है।” दिशांत ने अचकचा कर कहा तो प्रारथ ने पीछे पलटकर देखा। उसने एक एक तीखी मुस्कुराहट होंठों पर बिखेर कर कृशा को देखा तो कृशा ने नफ़रत से उसे देखकर मुंह बिचका दिया।
“शांत! तू चुप रहेगा। वो मुझे बुरा समझे या अच्छा मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।” प्रारथ ने दिशांत की तरफ़ देखकर कहा जो कृशा को सब बताने के लिए जा रहा था। वो रुक गया।
“पर तू ऐसा क्यों कर रहा है?” दिशांत ने खीझते हुए कहा तो प्रारथ ने अपना गागल लगाया और बिना कुछ कहे वहां से चला गया। यह देखकर दिशांत बुरी तरह झुंझला गया।
सब ब्रेकफास्ट के लिए डायनिंग टेबल पर इकट्ठा हो रहे थे। प्रारथ सीधे अपने कमरे में पहुंचा। कृशा तैयार हो रही थी।
“चलो हमें पुलिस स्टेशन चलना है। तुम्हारे होनहार भाई को तुम पर भरोसा नहीं है। इसीलिए उसने पूछताछ के लिए पुलिस का सहारा लिया है।” प्रारथ अपनी जैकेट उठाते हुए बोला तो कृशा यह सुनकर चौंकी।
“मैं कहीं नहीं जा रही..” वो कह ही रही थी कि जब प्रारथ ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसके क़रीब आते हुए बोला,”लगता है अपने भाई की जान प्यारी नहीं है तुम्हें?” वो ताना मारते हुए बोला तो कृशा ने एक बार घृणा से उसे देखा।
“कितनी बार मेरी नजरों में गिरोगे तुम? तुम तो हैवानियत की भी हद पार कर चुके हो!” वो दांत पीसते हुए बोली तो प्रारथ कुछ पल उसे देखता रहा और फ़िर उसका हाथ लगभग खींचते हुए नीचे आने लगा।
वो सीढ़ियों से नीचे ही उतर रहा था कि नीरद मुस्कुराते हुए चेयर से उठ खड़े हुए और बोले,”गुड मॉर्निंग बहू! आज़ हमारा पूरा परिवार एक साथ नाश्ता करेगा।” प्रारथ आकर रुक गया।
“हम दोनों पुलिस स्टेशन जा रहें हैं। साले साहब ने थोड़ी जहमत की है जाना ही होगा। नाश्ता हम बाहर कर लेंगे अंकल!” वो बोला और आगे बढ़ा ही था कि तभी रीना बोलीं,”बेटा! आज़ हमारे होटेल में हमने डिनर का प्रोग्राम बनाया है और मीडिया की गैदरिंग भी होगी तो ये ज़रूरी है तुम दोनों के लिए!” प्रारथ ने रीना की तरफ़ देखा।
“हां शाम तक वक़्त से पहुंच जाना क्योंकि तुम दोनों की शादी की ख़बर मीडिया में आफिसियली अनाउंस भी तो करनी है।” नीरद ने कहा तो प्रारथ ने जी अंकल कहा और बाहर निकल गया।
“तुम उन्हें अंकल क्यों कहते हो?” कृशा ने एकाएक प्रारथ से पूछा तो वह उसकी तरफ़ देखने लगा।
“क्योंकि वो मेरे अंकल हैं।” कहकर वो चुपचाप कार ड्राइव करने लगा। अचानक से विधा को याद आया कि वो ठाकुर है और नीरद सिंघल!
“वहां कहना क्या है? तुम्हें अंदाज़ा भी है कि हम कितने मुश्किल में फंसे गए हैं?” वो गुस्से में बोली।
“दो-चार मुलाकातें तुम्हारे समाजसेवी संस्थाओं के जरिए हुई और हम दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया। फ़िर हमारी मुलाक़ात यहीं मुंबई में हुई और हमें एहसास हो गया कि हम एक-दूसरे के लिए ही बनें हैं पर हर लव स्टोरी के जैसे विलेन का रोल हिरोइन के भाई और बाप ही बने फ़िर क्या! हीरो-हिरोइन ने चुपचाप शादी कर ली। ये बात तुम्हारे भाई और बाप को हज़म नहीं हुई फ़िर न्यू वेड कपल को पुलिस स्टेशन में ही बुला लिया।” वो बिल्कुल आराम से बोला और कृशा अनिश्चितता से उसे घूरती रही।
“चलो ब्रेकफास्ट कर लें उसके बाद चलें..” कहकर उसने कार रोकी पर कृशा चुपचाप बैठी रहीं। अब प्रारथ भी आकर कार में वापिस बैठ गया। वो पुलिस स्टेशन पहुंच गए।
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“हां सर वो दोनों पहुंच गए हैं पुलिस स्टेशन!” वो एक काले कपड़ों में लिपटा आदमी था जो ब्लूटूथ से किसी को ख़बर दे रहा था।
“जैसे ही वो दोनों बाहर निकले तो उनका पीछा करना..कोई मुनासिब सुनसान जगह देखकर प्रारथ को मार डालना पर कृशा को खरोंच भी नहीं आनी चाहिए!” दूसरी तरफ़ से वेद कपूर ने सख़्त लहज़े में कहा।
“जी सर!” वो आदमी बोला और सामने उन पर फ़िर नज़रें गड़ाए बैठ गया।
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कृशा और प्रारथ जैसे ही अंदर पहुंचे तो विवेन वहीं खड़ा दिखा। वो झट से कृशा के सामने आ गया।
“तुम परेशान मत हो… मैं सब ठीक कर दूंगा।” वो बेचैनी से उसके चेहरे को अपने हाथों में बटोरते हुए बोला तो कृशा ने उसका हाथ झटक दिया।
“भाई! आप बेवजह छोटी सी बात को इशू बना रहें हैं…मैं बता चुकीं हूं कि हम दोनों ने अपनी मर्ज़ी से शादी की है।” वो चिढ़ते हुए बोली पर अंदर ही अंदर ख़ुद को कोस रही थी। वो चाहती थी कि विवेन उससे दूर रहें क्योंकि उसे डर था कि प्रारथ कहीं उसे नुकसान न पहुंचाएं। तभी प्रारथ और कृशा को दो पुलिस आफिसर अलग-अलग कमरे में इंवेस्टिगेशन के लिए ले गए।
“कहां मिलीं थीं आप उनसे?” उस पुलिस वाले ने कृशा से पूछा।
“एनजीओ के एक प्रोग्राम में..यही मुम्बई में!” विधा ने सीधे लहज़े में कहा।
“कितनी मुलाकातों के बाद आपको लगा कि आपको उनसे शादी कर लेनी चाहिए?” वो जैसे सवाल पहले से ही तैयार किए बैठा था पर कृशा बिना घबराए सारे ज़वाब दिए जा रही थी।
“आपको याद है जब आपने उन्हें प्रपोज किया था तो उन्होंने कौन-से रंग की ड्रेस पहनी थी?” आफिसर ने पूछा तो प्रारथ मुस्कुराया।
“सफ़ेद! और मैंने ब्लैक!” वो बिल्कुल आराम से बोला। यह सुनकर वो हताशा से प्रारथ को देखने लगा।
“इट्स ओवर सर! आप जा सकतें हैं।” यह सुनते ही प्रारथ बाहर निकला तो ठीक उसी वक़्त कृशा भी बाहर आई। दोनों को कुछ देर तक बाहर की बेंच पर बैठने को कहा गया।
“तुम ठीक हो? डोंट वरी! हम झूठ नहीं कह रहें हैं…हम जल्द यहां से फ्री हो जाएंगे। तुम विवेन के लिए अपने मन में बिल्कुल भी खटास नहीं रखो!” वो कृशा का सिर अपने सीने से लगाते हुए एकाएक बोला तो कृशा चिहुंक उठी।
“ब्लैक स्टोन में फिलिंग्स?” वो बोली ही थी कि प्रारथ ने उसके होंठ पर अपनी उंगली रख दी। कृशा बुरी तरह चौंक उठीं कि प्रारथ उसकी आंखों में झांकते हुए धीरे से फुसफुसाया,”वो लोग हमें वाॅच कर रहें हैं…प्लीज़ बिहेव लाइक ए कपल!” वो बोला तो कृशा थोड़ा सहज हुई।
“मैं ठीक हूं। तुम भाई को माफ़ कर दो मेरे लिए..” कहकर वो ख़ुद ही उसके गले लग गई जबकि बाहर से सबकुछ देख रहा विवेन चौंक उठा। इंस्पेक्टर ने अर्थपूर्ण और असहाय नज़रों से विवेन की तरफ़ देखने लगा। विवेन हकबकाया हुआ सा ठंडा सा उन दोनों को देख रहा था।
क्रमशः…
अब क्या करेगा विवेन? क्या प्रारथ
पर हमला होगा? क्या कृशा सबका सच जान पाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए…