Wounded Love episode 5

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पूरा माहौल एकाएक शांत हो गया था। सबकी सांसें पल भर को थम सी गईं थीं। विवेन ने एक नज़र उन सब पर डाली और नफ़रत से बोला- तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है कृशा! तुम बस सच बताओ कि प्रारथ और नीरद ने तुम्हें जबरदस्ती किडनैप कर शादी के लिए फ़ोर्स किया… बाक़ी का काम तो पुलिस करेगी!” कृशा चुपचाप सबको घूर रही थी। वो यहीं तो चाहती थी कि उसका भाई उस तक पहुंचे और वो यहां से आजाद हो सके पर अब? अब जब वो होप उसके सामने है फ़िर हिचकिचा क्यों रही थी? ऐसा लगा जैसे उसका पूरा दिमाग़ सुन्न पड़ गया था। विवेन ने उसे झकझोरा तो वह जैसे अपने ख्यालों से बाहर आई!

“नहीं भाई! आप ग़लत समझ रहें हैं..प्रारथ ने मुझसे जबरदस्ती शादी नहीं की बल्कि ये हम दोनों की मर्ज़ी से हुई है। हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं..” कृशा ने कहा और सब चौंक पड़े। ख़ुद प्रारथ भी हैरानी से उसे देखने लगा। विवेन गुस्से चीखा,”शटअप! तुम उससे डर क्यों रही हो? मैं हूं न..से द ट्रुथ! वो तुम्हें कुछ भी नहीं कर सकता..”

हालांकि कृशा की बात सबको हज़म ही नहीं हुई थी। वो साफ़ झूठ बोल रही थी। दिशांत तुरंत समझ गया कि ज़रूर कृशा किसी दबाव में आकर ये सब कह रही थी। कृशा ने अपने भाई की तरफ़ लाचारी से देखा।

“प्लीज़ भाई एक्सेप्ट इट! हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करतें हैं और इसलिए शादी की..” कृशा ने ख़ुद को संयमित करते हुए कहा और अजीब नज़रों से प्रारथ को देखा जो उसे ही देख रहा था।

“शादी? अब और झूठ मत बोलो कृशा! अगर तुम इस प्रारथ से प्यार करती थी तो फ़िर अब तक मुझे बताया क्यों नहीं? और तुम्हें इस तरह चोरी-छिपे शादी करने की जरूरत ही क्यों पड़ी? बोलो? है कोई ज़वाब?” विवेन ने गुस्से में पूछा। वो बमुश्किल अपना गुस्सा काबू में कर रहा था।

“क्योंकि आप और डैड कभी भी इस शादी की इजाज़त ही नहीं देते। जैसे आज़ मेरी शादी भी एक्सेप्ट नहीं कर रहें हैं! प्रारथ तो डैड और आपसे बात भी करने वाला था पर मैंने ही उसे मना किया…कपूर और सिंघल की नफ़रत किसी से छुपी नहीं है भाई!” कृशा ने सख़्ती से कहा तो विवेन के साथ कोई निरुत्तर हो गया। कृशा हर सवाल का बेहद संतुष्ट भरा ज़वाब दे रहा थी। सच भी था कि कपूर और सिंघल एक-दूसरे की राइवल कंपनियां थीं। विवेन को फ़िर भी लग रहा था कि कृशा दबाव में आकर बोल रही थी। 

 

वो उसका चेहरा थामकर बेहद प्यार से बोला – प्रारथ ने तुझे धमकी दी है? देख किसी को कुछ नहीं होगा कृशा बस तू सच बता दें? मैं जानता हूं इनकी फितरत कि ये बदला लेने को किसी भी हद तक गिर सकतें हैं! वैसे भी तुम्हारा बैग और फ़ोन हमें असम में गिरा मिला था तो मतलब कि तू किसी मुसीबत में थी?” विवेन ने इतनी आत्मीयता से कहा था कि कृशा का मन हुआ वो उससे लिपटकर सब कुछ सच बता दें! जैसे हर बार करती थी पर उसने कातर निगाहों से प्रारथ की तरफ़ देखा..

“मेरा बैग चोरी हो गया था भाई और वैसे भी मेरे साथ चार और लोग भी तो असम गए थे न? हम एनजीओ के लिए गए थे और हमारा काम भी तो ख़त्म हो चुका था पर वहां मुझे प्रारथ मिल गया और फ़िर मुझे लगा कि ये अच्छा मौक़ा है। हम दोनों वहां से चले आए..” कृशा ने सपाट लहजे में कहा। विवेन बुरी तरह झुंझला गया था। वो सच जानता था कि प्रारथ ने ही उसे फोर्स किया है पर वो कुछ नहीं कर पा रहा था।

“ओके! देन तुम दोनों से ही कुछ पूछताछ होगी क्योंकि मैं मेरी बहन को इस तरह छोड़कर नहीं जा सकता..” विवेन ने पीछे हटते हुए कहा।

“भाई प्लीज़ ऐसा मत करिए! हमने शादी अपने मर्ज़ी से की है और हम एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते..” कृशा ने कहा तो अनायास ही प्रारथ की नजरें उसपर ठहर गईं।

“एक मिनट! कृशा कब से एक्सप्लेन कर रही है फ़िर भी आपको समझ में नहीं आ रहा? आप किस बेसिस पर मुझे अरेस्ट करने आएं हैं? देखिए बेहतर होगा कि आप यहां से तुरंत चलें जाएं वरना मजबूरन मुझे अपने वकिल को बुलाना पड़ेगा!” प्रारथ की सख़्त आवाज़ गूंजी तो सब उसकी तरफ़ देखने लगे।

“आयम़ साॅरी मिस्टर कपूर! बट हम इसमें कुछ भी नहीं कर सकतें हैं। सबकुछ आपकी बहन के मनमुताबिक ही हुआ है तो..” कहकर इंस्पेक्टर चुप हो गया। विवेन ठगा सा महसूस कर रहा था। तभी मिस्टर वेद कपूर वहां आ पहुंचे।

“चलो कृशा! तुम्हें तो इस गुस्ताख़ी का खामियाजा भुगतना होगा सिंघल… ख़ून के आंसू न रुलाए तो मेरा नाम भी वेद कपूर नहीं!” कहकर वेद ने कृशा का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगे पर अचानक ही रुक गए! उन्होंने पीछे पलटकर देखा तो प्रारथ ने कृशा का हाथ थाम रखा था और कृशा रुक गई थी। प्रारथ आगे बढ़ा और वेद के हाथों से कृशा का हाथ छुड़ा लिया। वो हल्के से मुस्कुराया!

“एक दिन तो बेटी को विदा करना ही पड़ता है कपूर साहब..और अब तो कृशा मेरी बीवी है। मेरी इजाज़त के बिना आप उसे कहीं नहीं ले जा सकते..बहुत प्यार जो करता हूं उससे!” वो अजीब लहज़े में बोला और वेद कृशा की तरफ़ देखने लगे। कृशा ने नज़रें झुका लीं। नीरद यह सब देखकर बेहद खुश नज़र आ रहे थे।

“डैड चलिए यहां से! याद रखना मैं अपनी बहन लेकर ज़रूर जाऊंगा यहां से..” कहकर विवेन ने प्रारथ को घूरा। पुलिस बाहर निकल गई। विवेन और वेद भी दरवाज़े तक पहुंचे थे। प्रारथ दरवाज़े तक आया था।

वो धीरे से फुसफुसाया – वो भी दूसरों की बहन-बेटियां थीं जिन्हें बेचने के लिए तुम विदेश भेज रहे थे। थोड़ा दर्द और बद्दुआ तो तुम्हारे दामन में भी आएगी ही न?

उसने कहा और मुस्कुरा कर उन दोनों को देखा। दोनों ने जहरबुझी नज़रों से उसे घूरा और पैर पटकते हुए बाहर निकल गए।

 

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“इन्हें पता कैसे चला? किसने बताया?” प्रारथ वापस लौटा तो घर के सभी सदस्यों को देखकर पूछ पड़ा।

“मैंने! ये मज़ा ही अलग था। कपूर ने बड़ी गीदड़भभकी दी थी पर अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे!” नीरद ने मुस्कुराकर कहा।

“ग़लत किया अंकल आपने! ख़ैर! ये सारी डेकोरेशन यहां से हटा लो। आंटी आप ख़ासतौर से मेरे कमरे से दूर रहेंगी!” प्रारथ ने संजीदगी से कहा। 

कृशा पथराई सी खड़ी दरवाज़े को घूर रही थी। प्रारथ ने कृशा का हाथ थामा और अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। उसकी आंखें बहती जा रहीं थीं। प्रारथ कमरे में आया और उसकी तरफ़ देखकर बोला,”तुमने बहुत अच्छे से सब हैंडल कर लिया। तुम आराम कर लो अब..” वो थोड़ी नरमी से बोला। 

प्रारथ ने नफ़रत और अपनी आंसुओं से लबालब आंखों से उसे घूरा!

“तुम सच में एक हैवान हो! मेरे भाई के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो? देखना एक दिन तुम्हें इन सबकी सज़ा मिलेगी..आई हेट यू…आई हेट यू डेविल..” वो फूट-फूटकर रो पड़ी। वो प्रारथ के सीने पर मुक्के से लगातार प्रहार कर रही थी। प्रारथ के जबड़े भिंच गए थे। कृशा ने मंगलसूत्र खींचकर तोड़ दिया। सारी काली मोतियां प्रारथ के पैरों के आसपास बिखर गईं। उसने अपने हाथ से सिंदूर पोंछा और गुस्से में बोली,”आई प्रामिस यू..तुम्हारा ये सियाह सच और रंगत एक दिन अपनी इसी सफेदी में ख़ाक़ कर दूंगी। हमारा कोई मेल कभी नहीं हो सकता प्रारथ ठाकुर…तुम सियाह हो और मैं सफ़ेद! तुम्हें बुराइयां पसंद हैं और मुझे उनका अस्तित्व मिटाना पसंद है!” 

प्रारथ ने उसकी दोनों कलाइयां कसकर पकड़ लीं और उसकी आंखों में झांकते हुए बोला,”तुम मिट जाओगी क्योंकि अंधेरा सबकुछ खा लेता है! बस मैं बचूंगा सियाह!” वो बेहद संजीदगी से बोला और कृशा को पीछे झटक दिया। नीचे बिखरी मोतियों और लाॅकेट पर पैर रखकर वो बाहर निकल गया। उसने हमेशा की तरह कमरा बाहर से लाॅक किया और सीढ़ियों से नीचे उतरा तो सब अभी भी नीचे ही खड़े उसे घूर रहे थे।

 

वो जाते हुए बोला,”उसके पास जाने की ज़रूरत नहीं है। कोई भी उधर नहीं जाएगा…मतलब कोई भी नहीं!” कहकर वो बाहर निकल गया।

 

“जाने दो! तुम सब अपना काम करो। प्रारथ को पता है कि उसे क्या करना है?” नीरद ने कहा और वो अपने कमरे में चले गए। रीना ने सबको अपने-अपने कमरे में जाने का इशारा किया और ख़ुद पूजा के साथ किचन की तरफ़ चलीं गईं।

“मैडम आप प्रारथ भाई का कितना ख़्याल करतीं हैं पर वो हमेशा आपका दिल दुखा देते हैं!” पूजा 25 साल की बेहद शालीन युवती थी। उसने पूछा तो रीना उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुराई।

“बच्चे हठ करें या ज़िद करें तो क्या मां उन्हें प्यार करना छोड़ देती है? मेरे लिए नेहा, पूर्वी, दिशांत और प्रारथ एक जैसे ही हैं। सालों पहले जब नीरद उन दोनों को घर लेकर आए थे तो सबसे ज़्यादा मैं ही ख़ुश थी। कितना कुछ सहा है उसने…बस उसी वज़ह से वो इस तरह हो गया है।” रीना ने कहा तो पूजा सम्मान से उन्हें देखने लगी। 

“प्रारथ भाई ज़ाहिर नहीं करते पर वो सबसे बहुत प्यार करतें हैं। उस दिन जब पूर्वी मैम अकेली थीं घर पर तो वो पूरे दिन विला में ही रहे! गार्डन में बैठे अपना काम करते रहे पर जाहिर नहीं होने देते!” पूजा वो वाकया याद करते हुए बोली। रीना मुस्कुरा उठीं।

“ये सब डायनिंग टेबल पर लगाओ तब तक मैं सबको बुला कर लातीं हूं..” रीना ने कहा और जाने लगीं।

“और वो कृशा भाभी?” पूजा ने असमंजस में पूछा तो रीना जाते हुए बोलीं – प्रारथ ही जाने।

 

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“ये सब उस नीरद की ही साज़िश होगी…वो धूर्त बाज़ निकला! मैंने कितनी बार इस लड़की को मना किया था कि चुपचाप घर बैठे पर इसे तो समाजसेवा करनी थी…जाने कौन सी आफ़त लेकर आ गई।” वेद कपूर अपने आलीशान बंगले में गुस्से में चहलकदमी करते हुए फुंफकार पड़े।

“ये प्रारथ भी कम चालाक नहीं है! उन लड़कियों को भी हमारे चंगुल से उड़ा ले गया और मेरी बहन को भी! इसे तो सबक सिखा कर रहूंगा!” विवेन ने गुस्से में अपनी मुट्ठियां भींच लीं। तभी विवेन की पत्नी निशा लान में पहुंची।

“आप आ गए? कृशा मिली? कहां है वो?” निशा ने घबराकर पूछा तो विवेन असहाय नज़रों से उसे देखने लगा।

“उस नीरद ने जानबूझकर मुझे मैसेज किया था ताकि वो हमारी बेइज्जती कर सके और हमें अपने ही घर में जलील कर सके! मुझे पहले ही अंदाज़ा होता तो मैं कभी वहां जाता ही नही! कृशा भी तो हफ्ते-हफ्ते उस एनजीओ के लिए घर नहीं आती तो मुझे लगा कि फ़िर ऐसा ही कोई काम आन पड़ा होगा।” वेद उस अपमान का विष अब भी चख रहे थे। 

“क्या हुआ? कृशा ठीक तो है?” निशा ने अनिश्चितता से पूछा।

“प्रारथ ठाकुर को तो जानती हो न? दोनों ने शादी कर ली है पर मैं जानता हूं कि ये शादी उस प्रारथ ने जबरदस्ती ही की होगी!” वो निशा को सबकुछ बताते हुए सोफे पर पसर गया।

“चलो डिनर लगवाओ! उसकी अक्ल ठिकाने लगानी ही पड़ेगी।” वेद दनदनाते हुए अपने कमरे में चले गए। निशा की आंखों से आंसू छलक उठे।

“आपकी और डैड के किए कर्मों का फल कृशा को भोगना पड़ रहा है..वो तो हमेशा इस दलदल से दूर रही फ़िर भी ये सब उसके हिस्से क्यों आया?” निशा ने भर्राई आवाज़ में कहा तो विवेन ने उसे खुद से लगा लिया।

“मैं उसे लेकर आऊंगा निशा! उसे कुछ नहीं होने दूंगा!” विवेन ने अपराध-बोध से ग्रस्त होकर कहा। 

 

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प्रारथ ने सड़क के किनारे अपनी कार खड़ी की और चुपचाप अंधेरी रात में सुनसान जंगल को घूरने लगा। बिल्कुल ऐसा ही अंधेरा तो उसके अंदर भी फैला था…निचाट! निघुन! ख़ामोश! अब उसे एक-एक कर वो सारी बातें याद आ रहीं थीं। कृशा का आंसुओं से तर-बतर चेहरा उसके आंखों के सामने घूम गया। उसने गुस्से में अपनी भिंची मुट्ठियां बोनट पर दे मारी! ये कैसा अंधेरा था जो धीरे-धीरे उसे ही लीलता जा रहा था। तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह पलट गया।

“तू? यहां क्या कर रहा है?” प्रारथ ने कहा।

“जो तू यहां कर रहा है।” दिशांत ने कहा और उसके बगल आकर खड़ा हो गया।

“तू खुद को तकलीफ़ क्यों दे रहा है? क्या हो गया है तुझे? टैडी के जाने के बाद से तूने ख़ुद को ज़ब्त क्यों कर लिया है?” दिशांत ने निपट अंधेरे में उसका चेहरा देखते हुए कहा।

“मुझे एक बार पता चल जाए कि आॅर्फेनेज़ में वो आग किसने लगाई थी फ़िर उसे उसकी ज़िंदगी का जहन्नुम दिखा दूंगा! वो ज़रूर कोई साज़िश थी जिसमें मेरा भाई मर गया…सब कुछ तो खो चुका हूं। मां-पापा, छोटा भाई..और अब तुझे नहीं खोना चाहता! तू क्यों उसके लिए ये सब कर रहा है? वो भी बाक़ी कपूर’स के जैसी ही है। जानता है वो वहां उन लड़कियों को वापस अपने बाप के चंगुल में ही ले जाने आईं थी!” प्रारथ ने ठंडे लहज़े में कहा और चुप हो गया।

“वो वैसी नहीं है यार! देख..उसका दिल कितना मासूम है। और ज़रूरी तो नहीं कि जो उसका बाप और भाई कर रहा है वो भी वही सब करती हो?” दिशांत ने फ़िर कृशा के पक्ष में अपना तर्क रखा तो रिशान ने उसे घूरा।

“तू मेरा भाई कम उसकी तीमारदारी ज़्यादा नहीं कर रहा है?” प्रारथ ने बिगड़ते हुए कहा तो दिशांत हंसते हुए बोला,”क्यों नहीं? आख़िर वो मेरी भाभी हुईं और मैं उनका प्यारा सा नटखट देवर!” कहकर वो खिलखिला उठा और प्रारथ उसे खीझते हुए देखने लगा।

“बस कपूर से अपना काम निकलवाते ही उसे उसके घर छोड़ आऊंगा। डायवोर्स के साथ! वो तो अचानक ही मेरे प्लान में आ गई वरना शादी तक तो मैंने भी नहीं सोचा था! मौत को जेब में रखकर घूमता हूं..” वो फिर बोला तो दिशांत भी शांत हो गया। एक वो ही तो था जिससे प्रारथ अपने मन की दो-चार बातें बांट पाता था, जिसको उसने ख़ुद को डांटने-डपटने का हक़ दिया था! दोनों चुपचाप उस अंधेरी रात में बैठे रहे।

 

क्या होगा प्रारथ का अगला क़दम? कृशा अब क्या करने वाली थी? क्या वो चुप रहती या इस

हालात से लड़ती? जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला भाग..

 

क्रमश:…

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