असम,
अगला दिन..
जहां तक नज़र पहुंच रही थी सिर्फ़ पेड़ों और दूबों की झुरमुट में लिपटी हरियाली ही नज़र आ रही थी। ऊंचे उठते पहाड़ तो कहीं गर्त को समाती खाईयां! पहाड़ियों पर बनी नक्काशी दार पगडंडियां.. वो लकड़ियों का एक चौकोराकर घर था। आजू-बाजू पेड़ों की घनी आबादी में घिरा वो इकलौता घर था। घर के चारों तरफ़ गार्ड का जबरदस्त पहरा था। दो आदमी हाथों में पकड़ी थैलियों में खाने का सामान लेकर उसी तरफ़ बढ़ते चले जा रहे थे।
“भाई..वो लड़की अब तक सो रही है क्या?” दिशांत ने हाथ में पकड़ी थैलियों को सेंटर टेबल पर रखते हुए पूछा।
“क्यों? इसी बहाने तो चुप है वरना दरवाज़े टूटकर अलग हो गए होते!” सोम ने चिढ़ते हुए कहा और सोफे पर पसर गया।
प्रारथ ने दोनों की तरफ़ बारी-बारी से देखा और सामान उठाकर किचन की तरफ़ बढ़ते हुए बोला – दोनों फ्रेश हो जाओ.. मैं सैंडविच तैयार करता हूं।
तभी प्रारथ का फ़ोन बजा। उसने स्क्रीन की तरफ़ देखा और गहरी सांस खींचकर उन दोनों की तरफ़ देखकर बोला – मैं आ रहा हूं। उस लड़की पर नज़र रखना…मेरे कमरे में हैं।
कहकर वो तुरंत हाॅल से बाहर निकल गया। सोम और दिशांत ने एक-दूसरे को देखा। प्रारथ ने फ़ोन उठाया और कान पर लगाकर चुपचाप खड़ा हो गया।
“प्रारथ? बेटा तुम ठीक तो हो? और क्या ज़रूरत थी उन लड़कियों के लिए अपनी जान ख़तरे में डालने की? अगर वो पांच मर भी जाती तो हमें क्या?” दूसरी तरफ़ से एक रौबदार आवाज़ गूंजी।
“काम हो चुका है अंकल! सोम और दिशांत पैसे लेकर मुंबई पहुंच जाएंगे।” प्रारथ ने बिल्कुल ठंडे लहज़े में कहा।
“प्रारथ? पैसों से ज़्यादा तुम अज़ीज़ हो समझे!” वो आदमी झुंझलाहट में बोला। प्रारथ ने अपना सिर झटक दिया और फ़ोन रख दिया। वो अंदर आया तो दोनों उसे ही घूरते दिखे।
“पता किया कि ये लड़की वहां कैसे पहुंची?” प्रारथ ने उन दोनों की सवालिया निगाहों को नजरंदाज करते हुए अपना सवाल उछाला।
“किसी एनजीओ के अंडर काम करती है पर वहां कैसे पहुंची? हमें भी नहीं पता।” दिशांत ने गंभीरता से कहा। प्रारथ को अचानक ही कुछ याद आया! उसने अपनी जेब टटोली और कृशा का आईडी कार्ड उन दोनों की तरफ़ उछाल दिया।
“ये रहा उसका आईडी कार्ड! एड्रेस यहां का नहीं बल्कि मुंबई का है। तुम दोनों अभी पैसे लेकर मुंबई को निकल रहे हो..” प्रारथ ने आदेशात्मक लहज़े में कहा और किचन में चला गया। दिशांत हैरानी से उसे घूरने लगा। वो भी प्रारथ के पीछे-पीछे किचन की तरफ़ आ गया।
“प्रारथ? यार तुझे क्या हो गया है? हम हमेशा साथ रहते हैं फ़िर तू मुझे अकेले कैसे भेज सकता है? मैं कहीं जाने से रहा..” दिशांत ने गुस्से में वह आईडी कार्ड स्लैब पर पटका। प्रारथ आराम से सैंडविच तैयार कर रहा था।
“मैं पहुंच जाऊंगा न…बाई द वे उस लड़की को भी तो ठिकाने लगाना है न? तू हर बात को लेकर इतना पजेसिव क्यों हो जाता है?” प्रारथ ने हल्के नर्म लहज़े में कहा तो दिशांत उसे गंभीरता से घूरने लगा।
“हां उसका क्या? आई मीन कृशा?तूने अंकल को बताया उसके बारे में?” दिशांत परेशान होकर बोला।
“नहीं! ले और सोम को भी दे..वो मेरा मसला है।” प्रारथ बेपरवाही से बोला और स्लैब पर बैठकर ही सैंडविच की एक बाइट ली। दिशांत चुपचाप बाहर आ गया और तभी प्रारथ के कमरे का दरवाज़ा ज़ोर की ठकठकाहट के साथ चीखा!
“कहीं प्रारथ भाई को उस पर गुस्सा न आ जाए? जाने क्यों मुझे लग रहा है कि इस लड़की की मौत भाई के हाथों ही लिखी है।” सोम धीरे से बुदबुदाया और दिशांत उठकर बाहर चला गया। प्रारथ किचन से अपने रूम की तरफ आया। उसने दरवाज़ा खोला तो कृशा गुस्से में उसे ही घूर रही थी।
“मुझे कमरे में क्यों बंद किया? तुम्हें पुलिस के हवाले नहीं किया तो मेरा नाम भी कृशा नहीं..” कृशा अपने जबड़े भींचते हुए गुस्से में बोली।
“जस्ट शटअप! बोलने की इजाज़त नहीं दी है मैंने तुम्हें..अगर भूख लगी हो तो ये रही प्लेट!” कहकर प्रारथ ने बेरुखी से दरवाज़ा बाहर से बंद ही करना चाहा था कि कृशा एकाएक बोल पड़ी “मेरा बैग? कहां है?”
“तुम्हारी जीप में! अब तक तो पुलिस को मिल भी गया होगा.. यहां पुलिस तो क्या चिड़िया भी आने से रही तो चुपचाप खाओ और एक तरफ़ पड़ी रहो!” कहकर प्रारथ ने दरवाज़ा बाहर से बंद कर लिया जबकि कृशा ने गुस्से में प्लेट दीवार पर दे मारी।
बाहर सोम इस आवाज़ से चौंक उठा। प्रारथ की उंगली उसके कटे होंठ पर अनायास ही चलीं गईं। वो कड़वाहट में बोला – इसे तोड़ने-फोड़ने का बहुत शौक है!
दिशांत बाहर पगडंडियों पर चल रहा था और किसी से बात कर रहा था – जी अंकल! वो तो ठीक है और हमारा काम भी हो चुका है। आप तो जानते ही हैं कि प्रारथ कुछ भी अपने हाथों में ले तो वो अधूरा नहीं रहता। पर एक प्राब्लम हो गई है..
दृशांत ने कहा और कृशा के बारे में सोचने लगा। दूसरी तरफ़ एक चिहुंकी हुई आवाज़ आई – कैसी प्राब्लम?
“वो दरअसल…हम जब तक उन लड़कियों के पास पहुंचे वहां कोई कृशा नाम की लड़की पहले ही पहुंच गई थी। प्रारथ ने गुस्से में उसे हमारे साथ ही क़ैद करके रखा है..” दिशांत ने आहिस्ता से कहा और चुप हो गया।
“व्हाट? प्रारथ! इस लड़के का तो मुझे कभी समझ नहीं आता..न दो शब्द बात करता है न सुनता है। बस अपने मन की करनी है। पता भी है कि कपूर हमारे पीछे हाथ धोकर पड़ा है और उस लड़की ने अगर कुछ भी ऐसा-वैसा बयान दे दिया हमारे खिलाफ तो हमें लेने के देने पड़ जाएंगे..समझे? अरे समझाओ अपने उस जिद्दी दोस्त को” वो आदमी बुरी तरह झल्लाया हुआ बोला।
दिशांत ने गहरी सांस खींची।
“अब क्या करना है अंकल?” उसने पूछा।
“मार डालो उसे! प्रारथ से कहो कि असम की किसी पहाड़ी में उसे मारकर धक्का दे दे बाक़ी मैं संभाल लूंगा।” दूसरी तरफ़ से वो आदमी बेहद बर्बरता से बोला तो दिशांत हकबका कर चिहुंक उठा।
“क्या? पर अंकल..?” दिशांत ने कुछ कहना ही चाहा पर दूसरी तरफ़ से वो आदमी दृढ़ता से बोला – कह दिया मार दो तो बात ख़त्म!
फ़ोन कट गया। दिशांत परेशान सा घर की तरफ़ देखने लगा। वो सब इस वक़्त असम में थे। अनाथालय में हुई दुर्घटना के बाद मिस्टर नीरद सिंघल ने ही प्रारथ और दिशांत को अपने घर में पनाह दी। यहां तक कि अपने बेटे जैसा ही प्यार दिया। दोनों उस वक़्त बच्चे ही थे और अंदर पनपी कड़वाहट ने दोनों को इस ओर आगे बढ़ने को उकसा दिया।
मुंबई-
ढ़ेरों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। कई सारे पोस्टर और बैनर दीवारों पर लगे हुए थे। वो एक बड़ा और व्यवस्थित मंच था जिसपर खड़े एक नवयुवक ने अपने सामने शोर मचाती भीड़ को देखकर अपना हाथ उठाया और बोलना शुरू किया – हेलो! नमस्ते… मैं हूं निशान तो स्वागत है आप सबका हमारे चाइल्ड वेलफेयर फंड की इस छोटी सी मीटिंग में। जैसा कि आप सब जानतें हैं कि बच्चों और महिलाओं के लिए हमारा एनजीओ दिन-रात मेहनत कर रहा है और आप सब भी उसमें अपना भरपूर सहयोग कर रहें हैं। जहां बात सहयोग की आती है वहां एक ऐसे शख्स का ख़्याल ज़रूर आता है जो गरीबों, बच्चों और महिलाओं के विकास में हर संभव मदद जरूर करता है..जी हां आप लोग सही सोच रहें हैं। तो ज़ोरदार तालियों के बीच स्वागत करिए हमारे मेयर नीरद सिंघल का! वेलकम सर!”
निशान ने बड़ी गर्मजोशी से नीरद सिंघल से हाथ मिलाया और उन्हें भाषण देने को आमंत्रित किया। तालियों की गड़गड़ाहट ज़ोर से गूंजी। यह एक एनजीओ द्वारा आयोजित फंड-रेजिंग प्रोग्राम था। नीरद सिंघल माइक लिए बोले जा रहे थे और लोग बड़ी ही आत्मीयता से सुन रहे थे। निशान मंच से उतरकर पीछे संचालन टीम के पास आ गया।
“क्या कृशा अब तक नहीं आई?” निशान ने बेचैनी से अपने एक कलीग से पूछा और बदले में उसने अपना सिर न में हिला दिया।
“उसका तो फ़ोन भी नहीं लग रहा है। प्लान के मुताबिक वो उन पांचों लड़कियों को लेकर यहां पहुंचने वाली थी और आज़ के ही दिन हमें उस शख़्स को एक्सपोज़ करना था जो इन सबके पीछे था पर कहां रह गई वो?” ये कृशा की एक दोस्त वीना थी। निशान ने असमंजस में उसकी ओर देखा तभी उसकी नज़र सामने आते 28 साल के शख्स पर पड़ी और उसकी आंखें चौड़ी हो गईं।
“और निशान? कैसा चल रहा है तुम्हारा ये खैरात इकट्ठा करने वाला प्रोग्राम?” उस आदमी ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा तो निशान भी हंसा।
“मेयर साहब ने पचास लाख डोनेट किया है और अब आप भी कम-से-कम बीस लाख तो दे ही देंगे? क्यों भाई?” निशान ने दांव चला तो वो आदमी हंस पड़ा।
“भाई इतने बड़े एनजीओ को मेरे पैसे का क्या काम? वैसे भी ये खैरात औरों से लो भला घरवालों की ही जेब क्यों काटने पर तुले हो?” वो हंसते हुए बोला तो बदले में निशान भी हंस पड़ा।
“हम्म विवेन भाई! आइए न अंदर..” वीना तपाक से बोली तो विवेन इधर-उधर देखने लगा।
“कृपा कहीं नज़र नहीं आ रही है? इस लड़की की समाजसेवा से हैरान हो चुका हूं मैं! भला फ़ोन भी बंद करना क्या जरूरी है?” विवेन ने चिढ़ते हुए कहा। निशान और वीना ने एक-दूसरे को सहमी नज़रों से देखा।
“भाई वो.. दरअसल वो अपने दूसरे प्रोजेक्ट पर काम कर रही है..” निशान ने तपाक से जो सूझा वही कह दिया।
“चलो ठीक है फ़िर चलता हूं। आए तो कहना कि कभी-कभी उस कुटिया में भी कदम रख दिया करें जिसे हम घर कहते हैं।” विवेन ने कुढ़ते हुए कहा और चला गया। उन दोनों ने राहत की सांस ली।
“यार..ये कृशा तो हमें भी मरवाएगी! जाने कहां रह गई है?” वीना ने कलपते हुए कहा।
वो दोनों कृशा के अच्छे दोस्त थे और उसके लिए बेहद चिंतित भी।
“मुंह क्यों लटका है तेरा?” बाहर से बात करके अंदर पहुंचे दिशांत के मुरझाए चेहरे को देखकर प्रारथ ने पूछा।
“वो अंकल को पता चल गया है कि वो लड़की हमारे साथ हैं और जिंदा है..” दिशांत ने दबे स्वर में कहा।
“तो?” सोम तुरंत उचक कर बैठ गया।
“कहा है कि उसे जान से मार दो!” दिशांत ने कहा और प्रारथ की नजरें उस तरफ़ रुक गई।
“क्या?” सोम सदमे में बोला।
“हमारे धंधे में मौत कब से डरने वाली चीज़ हो गई? अपनी मुंह बंद कर!” प्रारथ बुरी तरह झुंझलाया तो सोम ने हड़बड़ाहट में अपना मुंह बंद किया।
“तुम दोनों निकलो बाक़ी उसका इंतज़ाम मैं कर लूंगा।” प्रारथ ने उठते हुए कहा और कार की चाबी दोनों की तरफ़ खिसका दी।
“भाई.. बेवजह उस लड़की के झमेले में मत फंस! मुझे उसके लिए बुरा भी लग रहा है कुछ भी हो पर लड़की अच्छी है। अपनी जान की परवाह किए बिना उनको बचाने आ गई पर उसे क्या पता कि वो सीधे मौत को चुन रही है..” दिशांत बेहद दुःख और हताशा से बोला।
“दिशांत? तेरा हमेशा का यही इमोशनल डायलॉग होता है..अब तो बंद कर दे।” सोम ने झुंझलाकर कहा।
“हर कोई मेरी तरह पत्थर दिल नहीं होता पर अपनी ये नरमी दुनिया को दिखाने की जरूरत नहीं है।” प्रारथ ने अजीब भाव में कहा।
दिशांत ने सिर हिलाया और सोम के साथ मुंबई को निकल गया।
प्रारथ ने अपनी गन उठाई और अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। कृशा बेड पर बैठी थी। आंसुओं से लबालब चेहरा! गुस्से और नफ़रत के तमाम भाव लिपटे पड़े थे उसके चेहरे पर। प्रारथ चुपचाप अंदर आया और उसने कृशा का हाथ पकड़ा। कृशा ने अपना हाथ गुस्से में झटक दिया और नफ़रत से रिशान को देखने लगीं।
“डोंट टच मी..”
प्रारथ ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और अपने जबड़े भींच लिए। वो कृशा को लगभग खींचता हुआ घर से बाहर लेकर आया।
“कहां ले जा रहे हो मुझे? लीव माय हैंड! यू..” वो दर्द में कराहती हुई बोली। उसकी आंखों से आंसू भी छलक उठे। प्रारथ ने उसे कार की तरफ़ धक्का दिया।
“मरना चाहतीं थीं तो मौत दे रहा हूं तुम्हें!” कहकर उसने फ़िर कृशा का हाथ पकड़ा और खींचता हुआ जंगल की तरफ़ जाने लगा। कृशा बुरी तरह चिहुंक उठी।
मौत! वह बुदबुदाई।
उसका पूरा चेहरा मारे डर के झक्क़ सफ़ेद पड़ता जा रहा था। मानो वह सदियों से बीमार हो ऐसे खींच रहा था प्रारथ उसे। वो दोनों जंगल के काफ़ी अंदर आ चुके थे। प्रारथ ने उस कंकरीली ज़मीन पर कृशा को फेंक दिया। वो भर-भराकर नीचे गिर पड़ी। प्रारथ ने उस पर अपनी गन तान दी और बड़ी बेरहम नज़रों से उसे देखने लगा। अचानक ही वो उठ खड़ी हुई।
“नो..नो..तुम ऐसा नहीं कर सकते! देखो…मुझे मारना नहीं.. नहीं है..मेरे भाई और डैड बहुत परेशान होंगे। तुम जो कहोगे मैं करने को तैयार हूं पर मरना नहीं चाहती..” वो मारे डर और घबराहट के लड़बड़ाई ज़ुबान में बोले जा रही थी। आंखें कितनी दफा बह चुकीं थीं। बेहद कातर नजरों से वो मिन्नतें कर रही थी पर प्रारथ बिल्कुल भावहीन सा खड़ा रहा! जैसे वो पत्थर हो जिन पर आंसुओं और खुशियों का असर होता ही नहीं।
“तुम भी तो इंसान हो फ़िर मुझे कैसे मार सकते हो? देखो! ये..ये रहा तुम्हारा दिल.. बिल्कुल वैसे ही धड़क रहा है जैसे मेरा.. प्लीज़ मुझे मत मारो!” कृशा घबराई हुई सी प्रारथ के सीने पर हाथ रखकर एकाएक बोल पड़ी। प्रारथ ने उसे पीछे की तरफ़ झटक दिया।
“मरना तो तय है तुम्हारा मिस कृशा कपूर!” वो बोला और बिल्कुल निशाने पर खड़ा हो गया।
कृशा घबराई और छलछलाई आंखों से प्रारथ को देख रही थी! आह! मौत कितनी बेरहमी से उसके पास आ पहुंचीं थी। अभी तो वो लोगों के लिए कितना कुछ करना चाहती थी और अब वो खुद असहाय थी! उसने याद किया कि वो उन लड़कियों को नहीं बचा पाई थी। ज़रूर ये उसी बात की सज़ा थी। उसने स्वीकार करते हुए अपनी आंखें कसकर भींच लीं और उसकी आंखों में ठहरा आंसुओं का अंबार उसके गालों पर लुढ़क गया। दर्द और डर से उसके जबड़े भिंचे हुए थे
। प्रारथ बिल्कुल भावहीन सा उसे देखता रहा और फ़िर ट्रिगर पर उंगली रख दी..
क्रमशः…