कृशा ने हील्स पहनी थी तो उसे चलने में दिक्कत हो रही थी। वो गेट से कम-से-कम दस-बारह फीट की दूरी पर आ गई थी। उसने अपनी हील्स निकाली और बेतहाशा भागने लगी। पैर में कंकड़ चुभने से वो गिर पड़ी!
“आह!” हल्की सिसकारी उसके मुंह से निकल गई। उसने झट से ख़ुद को समेटा और फ़िर भागी नंगे पांव! तभी उसे कुछ नज़र आया। वो झट से आगे पहुंची। वो एक टैक्सी थी। वो हील्स टैक्सी में फेंककर बैठते हुए जल्दी से बोली,”भैया..प्लीज़ जल्दी चलिए!” वो बुरी तरह हांफ रही थी।
प्रारथ की नजरों से बचने को वो अपने चारों तरफ़ भी हड़बड़ाहट में देख रही थी। टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट की।
“आप पानी पी लीजिए! बहुत घबराई हुई हैं आप?” टैक्सी ड्राइवर ने पानी की बाॅटल उसे थमाई। कृशा ने शुक्रिया कहा और आधी बाॅटल ख़ाली कर दी! वो सिंघल विला से कुछ दूर आ गए थे। अचानक ही उसे कुछ ख़्याल आया!
“आप एक मिनट के लिए अपना फ़ोन दे सकतें हैं? एक बहुत ज़रूरी काॅल करनी है।” वो बदहवासी में बोल रही थी। टैक्सी ड्राइवर ने उसे फ़ोन थमाया ही था कि फ़ोन एकाएक घनघनाया! वो चौंक गई।
“आपकी काॅल आ रही है!” उसने ड्राइवर को फ़ोन थमाते हुए कहा।
“आपकी ही है..” वो ड्राइवर अजीब तरीके से बोला कि कृशा चिहुंक उठी। उसने नंबर पे ग़ौर किया तो वो कोई अननोन नंबर था।
“हेलो?” वो अपनी आवाज़ को संयमित करते हुए बोली।
“ऐसा कोई कोना नहीं जहां मैं तुम्हें ढ़ूढ न सकूं! अब चुपचाप टैक्सी ड्राइवर को वापस विला लौटने को कहो..” वो आवाज़ प्रारथ की थी। विधा बुरी तरह चौंक पड़ी। उसके गले से आवाज़ ही नहीं निकली!
“तु..म कहां हो? मैं..अब तुम्हारे चंगुल से आज़ाद हूं समझे? मुझपर धौंस जमाने की कोशिश भी मत करना..” उसने बमुश्किल अपने डर और घबराहट पर काबू पाया और बोली। उसके माथे से पसीना छलकने लगा था। उसने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई और फ़ोन ड्राइवर को पकड़ा दिया।
तभी ड्राइवर ने कुछ कहा,”मैडम! आपके पति आपसे कुछ बात करना चाहतें हैं!” यह सुनकर तो कृशा का पारा चढ़ गया।
“वो हैवान मेरा पति नहीं है समझे? मुझे कोई बात नहीं करनी..” कृशा कह ही रही थी जब ड्राइवर ने फ़ोन की स्क्रीन उसकी तरफ़ कर दी! उसके शब्द लड़खड़ा गए। उसकी आंखें दहशत से फ़ैल गईं। क्या था वो? उसने अपनी कांपती उंगुलियों से फ़ोन झट से छीना और ग़ौर से देखने लगी।
वो एक सड़क से लगकर खड़ी गाड़ी के पास चार-छह पुलिस वाले और वही एनजीओ के चार वर्कर खड़े थे। उनके बगल ही खड़ा था विवेन! वो परेशान सा पुलिस से कुछ बात कर रहा था। ठीक उसके सामने ही एक दस मंजिला इमारत की छोटी खिड़की से एक शार्प-शूटर विवेन पर निशान लगाए कभी भी ट्रिगर दबाने ही वाला था। कृशा हदस कर ये सब देख रही थी। उसने झट से उसी नंबर पर दोबारा डायल किया!
“तु.. तुम ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ? मेरे भाई को कुछ मत करना.. मैं लौट रहीं हूं..!” वो अपने जबड़े भींचे दर्द में रो पड़ी। एक-एक शब्द बमुश्किल उसके गले से अटक कर निकल रहा था।
“गुड! मैं गेट पर अपनी होने वाली बीवी का इंतज़ार कर रहा हूं!” प्रारथ ने मक्कारी से कहा और हल्का सा मुस्कुरा उठा। कृशा ने फ़ोन उठाकर फेंक दिया। उसने सीट को भींच लिया और अपने जबड़े कसते हुए सिसक पड़ी! कितनी असह्य तकलीफ़ उसे ठीक इस वक़्त हो रही थी। वो बुरी तरह फंस गई थी प्रारथ नाम के इस भंवरजाल में! वो धीरे से फुसफुसाई और टैक्सी वापस सिंघल विला को चल पड़ी। इस पल कृशा ने सोचा कि इससे बेहतर तो मौत होती पर नहीं ज़िंदगी जीने के लिए हर चुनौती का सामना करने का जज्बा होना चाहिए। वो कतई हारेगी नहीं बल्कि जीतेगी। उसने ख़ुद को संभाला और अपने आंसूओं पोंछे। कृशा ने सामने देखा तो प्रारथ कार के बाहर खड़ा उसका ही इंतज़ार कर रहा था..
टैक्सी रुकी! वो झट से उतरी और सीधे प्रारथ की शर्ट पकड़ ली!
“तुम समझते क्या हो ख़ुद को? मैंने सोचा था कि शायद तुममें थोड़ा इमोशन होगा..पत्थर दिल ही सही पर कुछ दया भाव और इंसानियत बाक़ी होगी पर तुम शैतान हो! निर्मम हत्यारे हो! मुझे घिन आती है तुम जैसे शख़्स के साथ सांस लेने में भी…अपने मां बाप को शर्मिन्दा कर रहे हो तुम!” वो गुस्से और दर्द में फट पड़ी। प्रारथ अपने जबड़े भींचे उसे देख रहा था। उसने अपने दोनों हाथों से कृशा के बाजुओं को जकड़ा और फ़िर अपनी तरफ़ खींच लिया।
“मैं क़ातिल हूं और पत्थर दिल भी पर इसका एहसास तुम्हें मैं हर पल कराऊंगा! तुम कोसोगी ख़ुद को कि तुमने इस शादी से बेहतर मौत चुनी होती! वादा रहा अगर तुम्हारी ज़िंदगी नर्क न बनाई तो..” प्रारथ की आंखें गुस्से में धधक उठीं। उसने कृशा के जबड़े को कसकर पकड़ कर अपने चेहरे के बिल्कुल क़रीब लाकर कहा। कृशा नफ़रत से उसे घूरती रही। दोनों एक-दूसरे की आंखों में सिर्फ गुस्सा और नफ़रत ही देख रहे थे।
“साहब..वो मैडम ने मेरा फ़ोन तोड़ दिया..” उस टैक्सी ड्राइवर ने कहा तो कृशा उससे दूर हुई पर प्रारथ ने उसे पकड़कर फ़िर अपनी तरफ़ खींच लिया।
उसने उसकी आंखों में घूरता हुआ अपने जेब से कुछ रूपए निकाल कर उस टैक्सी ड्राइवर को पकड़ा दिए।
“पर साहब ये तो बहुत ज़्यादा हैं..” वो कह ही रहा था कि प्रारथ ने हाथ से जाने का इशारा किया और कृशा का हाथ कसकर पकड़ते हुए अंदर आ गया। धीरे-धीरे शाम भी ढल रही थी। इस वाकए के बाद दोनों के मन में एक दूसरे के लिए उपजी नफ़रत बेपनाह हो गई।
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“कुछ पता चला इंस्पेक्टर?” विवेन परेशान सा इंस्पेक्टर से पूछ रहा था।
“उन चारों से पूछताछ जारी है। मिस्टर कपूर आप सब्र रखिए जल्द ही कृशा का पता चल जाएगा!”
“डैड को भी पता चल गया है वो बस पहुंच रहें होंगे! जाने कैसी होगी कृशा? सब मेरी बेवकूफी की वज़ह से ही हुआ।” विवेन घबराहट में बोले जा रहा था।
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“आप में से किसने ये काम किया?” प्रारथ ने दांत पीसते हुए रीना, दिशांत, सोम और बाक़ी डिजाइनर को देख कर बोला।
“मैंने किया! बेटा अपनी निजी खुंदक निकालने के लिए ये ठीक नहीं है!” रीना ने कहा तो प्रारथ उन्हें देखने लगा।
“आइंदा से मेरे कमरे में कोई नहीं जाएगा आंटी..मतलब कोई भी नहीं!” वो कड़वाहट से बोला और दिशांत से अपने रूम की चाबी ले ली।
“जल्दी तैयार करके कृशा को नीचे लाओ। मुझे अब और देर नहीं करनी!” कहकर प्रारथ नीचे चला गया। कृशा गुस्से में उसे जाता देख रही थी। डिजाइनर उसे लहंगा चुनने को कहने लगी और गुस्से में उसने सब इधर-उधर फेंक दिया। रीना ने उसे संभाला और एक लहंगा उसके खातिर चुना! कृशा के जबड़ों पर प्रारथ की उंगलियों के निशान उभर आए थे तो न चाहते हुए भी उसे मेकअप का सहारा लेना पड़ा।
प्रारथ नीचे गार्डन में किसी से फ़ोन से बात कर रहा था। जैसे ही काल ख़त्म कर लो पीछे पलटा तो दिशांत उसे गुस्से में घूर रहा था। प्रारथ बेपरवाही से सिर झटकते हुए बोला,”तेरे सवालों के लिए न वक़्त है मेरे पास और न ही ज़वाब! अभी चुपचाप अंदर चल..” कहकर वो आगे बढ़ा पर दिशांत ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया।
“ये शादी है और क्या तू इसे निभा पाएगा? तू उसकी ज़िंदगी क्यों बिगाड़ रहा है?” दिशांत गुस्से में बिफर पड़ा।
“उसे अपनी हैवानियत की हद दिखाऊंगा।” प्रारथ ने हर शब्द चबाते हुए कहा।
“तू बाद में पछताएगा..अगर तू उससे प्यार करता फ़िर शादी करता तो मुझे कोई दिक्कत नहीं थी पर अब है..तू दिल से नहीं दिमाग़ से खेल रहा है!” दिशांत ने उसे आखिरी दफा समझाने की कोशिश की।
“अभी तो मैंने तुझसे ये भी नहीं पूछा कि तूने उसे यहां से भगाने में मदद क्यों की? मैं जानता था कि तू ये ज़रूर करेगा और मैं पहले ही तैयार था। मैंने तुझे मौक़ा दिया और देख वो फ़िर यही आ गई है। ये रहमदिली छोड़ दें!” कहकर प्रारथ ने उसका कन्धा थपथपाया और अंदर चला गया। उसे भी वेडिंग सूट पहनना था।
अंदर हाॅल को ही कुछ सफ़ेद फूलों और लाइट्स से डेकोरेट किया गया था। बीच में ही एक मंडप तैयार हुआ था जोकि सफ़ेद फूलों से लबरेज़ था। प्रारथ ने ब्लैक टक्सीडो पहना हुआ था। वो काफ़ी हैंडसम भी लग रहा था। एक पंडित और मैरिज ब्यूरो से रजिस्ट्रार आ चुके थे। सोम, दिशांत, नीरद सिंघल की बड़ी बेटी नेहा और छोटी बेटी पूर्वी भी मौजूद थे। रीना, नीरद और नेहा का पति अंकुश भी बैठे हुए थे। इनके अलावा बस घर के ही हेल्पिंग स्टाफ मौजूद थे। घड़ी देखकर नीरद बोले,”जाओ रीना दुल्हन को लेकर आओ!”
“आप रहने दीजिए आंटी…पूजा तुम जाओ लेकर आओ।” प्रारथ ने जानबूझकर रीना को मना किया और घर की एक फीमेल हेल्पिंग वर्कर को जाने का आदेश दिया। पूजा तुरंत ऊपर गई। कुछ देर बाद वो सीढ़ियों से हड़बड़ाकर लौटी!
“प्रारथ भाई वो आने से मना कर रहीं हैं!” पूजा ने कहा तो प्रारथ ने गुस्से में अपनी आंखें भींच लीं। वो तेज़ क़दमों से ऊपर की तरफ़ गया।
“जब आज़ शादी होनी ही है तो फ़िर इसका क्या मतलब? चलो आ जाओ..नीचे सब तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहें हैं।” प्रारथ ने दरवाज़ा खोलकर बड़ी ही शालीनता से कहा। कृशा ने उसकी तरफ़ देखा! उसकी आंखें पूरी तरह से लाल पड़ चुकीं थीं। उसने लाल लहंगे की जगह झक्क़ सफ़ेद पोशाक चुनी थी। बिल्कुल हल्का मेकअप, पूरा सफेद लिबास और आंखों में बिल्कुल सफेदी ओढ़े वो दुल्हन तो बिल्कुल भी नहीं लग रही थी।
“तुमसे शादी करने से अच्छा तो मैं मर ही जाऊ!” वो घृणा से बोली। प्रारथ ने अपना सिर झटका और उसका हाथ पकड़ लिया।
“चुपचाप नीचे चलो वरना अंज़ाम से वाक़िफ हो तुम!” वो सीधी तरह धमकी भरे लहजे में बोला और आगे बढ़ा पर कृशा ने गुस्से में उसे पीछे की तरफ़ धकेल दिया। वो दीवार से जा लगा। अगले ही पल उसने कृशा की कमर पर हाथ रखकर अपनी तरफ़ तेज़ी से खींचा कि वो सीधे उसके गले जा लगी!
“चुपचाप चलो..समझी! एहसान तुम नहीं बल्कि मैं कर रहा हूं तुम पर!” वो उसकी गर्दन पर हाथ रखकर हर शब्द चबाते हुए गुस्से में बोला और उसका हाथ थामे नीचे पहुंच गया। सारी डेकोरेशन देखकर प्रारथ का मन कड़वाहट से भर गया।
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दोनों नीचे पहुंचे और मंडप में बैठ गए। पंडित ने ज़रूरी मंत्रोच्चार शुरू किया।
“कृशा ने सफ़ेद कपड़े क्यों पहने? अरे शादी में तो लाल ही शुभ होता है!” नेहा फुसफुसाई।
“उसे पसंद है। रंगों से प्यार थोड़े कम होता है!” रीना मुस्कुरा कर बोलीं और दोनों को देखने लगीं। नीरद ने किसी को मैसेज किया और शादी देखने लगे। दिशांत गुस्से में प्रारथ को घूर रहा था।
फेरे, सिंदूरदान,जयमाल लगभग सारी रश्मे पूरी हो चुकीं थीं। कन्यादान रीना ने किया था। दोनों मैरिज सर्टिफिकेट पर साइन कर रहे थे। कृशा अंदर-ही-अंदर टूट चुकी थी। फाइनली दोनों की शादी हो चुकी थी।
“कांग्रेचुलेशन बच्चों! अब एक शानदार रिसेप्शन होगा जिसमें हर कोई इन्वाइट होगा। कपूर खानदान भी!” नीरद ने दोनों को बधाई देते हुए खुशी से कहा।
“आप जैसे इंसान ही लोगों को जोंक बनकर चूसते रहते हैं… एनजीओ में सबसे पहले आप फंड डोनेट करतें हैं और जुर्म में भी सबसे पहले आपका ही नाम है। एक दिन मैं इस कैद से आज़ाद हो जाऊंगी और आपको जेल की सलाखों में जरूर भेजूंगी मिस्टर नीरद!” कृशा कड़वाहट और नफ़रत से नीरद की तरफ़ देखकर बोली। नीरद हंस पड़े।
“पसंद आई मेरी बहु की अकड़! तुम बिल्कुल प्रारथ के लिए सही हो।” वो अब भी बिल्कुल सहज थे। कृशा का चेहरा बिल्कुल मुरझा गया था। रीना ने प्यार से कृशा के सिर पर हाथ फेरा।
“हमारे परिवार में तुम्हारा स्वागत है बेटा!” कृशा की आंखें फ़िर छलछला उठीं। वो कहां आकर फंस गई थी! वो अपने कमरे की तरफ़ बढ़ी तो प्रारथ ने उसका हाथ पकड़ लिया। कृशा बुरी तरह खीझ पर उसने कुछ नहीं कहा! ऐसा लग रहा था मानों इतने दिनों की थकान इन दो पलों में और बोझिल होकर उसे सता रही थी। वो दोनों सीढ़ियों पर अभी दो क़दम ही चढ़े थे कि तभी विला का गेट खुला!
“ये रहा वो प्रारथ ठाकुर! अरेस्ट हिम इंस्पेक्टर! मेरी बहन को इसने ही किडनैप किया और जबरदस्ती शादी भी कर ली..” विवेन ने गुस्से में प्रारथ को घूरते हुए कहा तो वो दोनों भी एकाएक पलट गए। कृशा हैरानी से विवेन को देखने लगी। “भाई!!” वो धीरे से फुसफुसाई। नीरद मुस्कुरा रहे थे और बाक़ी सब सदमे में थे कि आगे जाने क्या होने वाला था?
कृशा ने अपनी लरजती नज़रों से प्रारथ की तरफ़ देखा! प्रारथ ने एक बार ख़ाली नज़रें उस पर डालीं और उसका हाथ कसकर भींच लिया।
“कृशा..तुम ठीक तो हो?” कहकर विवेन ने कृशा को गले से लगा लिया। कृशा की आंखें भरभरा कर बह चलीं! कितना सुकून महसूस कर रही थी वो पर क्या सब इतना आसान था?
“मैं ठीक हूं भाई पर आप यहां कैसे?” वो जबरन शब्द खींचते हुए बोली। आंसुओं और दर्द के मारे उससे बोला भी नहीं जा रहा था। उसका मन हुआ कि वो सब कुछ बता कर इस क़ैद से हमेशा के लिए छुटकारा पा ले!
“तुम बताओ बस…इस प्रारथ और नीरद को जेल में न पटका तो मेरा नाम भी विवेन कपूर नहीं!” वो गुस्से में कलपता हुआ बोला। कृशा ठकराई सी उसे देख रही थी और सब उसे! विवेन की मुट्ठियां भींची हुईं थीं।
क्या कृशा सब सच बता देगी
? क्या प्रारथ और नीरद जेल जाएंगे? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग..
क्रमशः…