नुपुर : एक तिलस्मि धुन | Episode 01

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Episode 01

नूपुर की कहानी…

एक रोज़ अंधेरी रात मे बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। वराणसी की गलियों में भागती हुई एक औरत अपने बच्चे को गले से लगाए हुए थी। वो बच्ची उसकी गोद में दुबक कर सो रही थी जैसे उसे दुनियाँ से कोई मतलब नहीं। उन गलियों में भागते हुए उस औरत के पैरों के घुंघरू बहुत शोर कर रहे थे बारिश के पानी मे वो जहाँ भी अपने कदम रख रही थी पानी का रंग उसके खून से लाल होता जा रहा था।

उसके कदम डगमगा रहे थे लेकिन थमने का नाम नहीं ले रहे थे और उस बच्ची पर उसकी पकड़ मजबूत होती जा रही थी। भागते हुए वो बार बार पलट कर पीछे देख रही थी जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो लेकिन वहाँ उसके पीछे दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था।

अकस्मात एक गली के मुहाने पर उसके कदम थम जाते हैं और वो एक बार अपनी बच्ची की ओर देख कर उसका माथा चूम लेती है, “उम्मीद करती हूँ कि तुम इस सब से दूर रहोगी नूर! वो लोग तुम्हे ढूंढते हुए यहाँ ज़रूर आयेंगे लेकिन तुम्हे इतनी जल्दी हार नहीं माननी! अभी तुम्हारा इतिहास लिखा जाना बाकि है नूर!”

वो औरत अपने पैर की पायल से एक घुंघरू तोड़ कर उस बच्ची के कपड़ो में रख देती है और फिर उस गली की ओर देखते हुए उस पहले घर के सामने फ़र्श पर रख देती हैं। वहाँ से जाने से पहले वो एक बार घर के दरवाजे पर दस्तक देती है और इससे पहले की कोई घर का दरवाजा खोलता वो औरत वहाँ से चली जाती हैं।

उस घर में रहने वाली एक औरत दरवाजा खोलते ही इधर उधर देखती है लेकिन उसे बाहर कोई भी नज़र नहीं आता है।

“अजीब है! इतनी रात और तेज़ बारिश मे कोई दरवाजा खटखटा कर भाग जाता है? ये किसकी शरारत हो सकती हैं?” ये सोचते हुए वो जैसे ही दरवाजा बंद करने जाती है उसकी नज़र दरवाजे के सामने रखी बच्ची पर जाती हैं।

“ये क्या है? इसे यहाँ कौन छोड़ कर चला गया?” वो औरत उस बच्ची को अपनी गोद में उठा लेती है और फिर एक बार अपने आस पास देखती है लेकिन उस अंधेरे में उसके सिवाय वहाँ कोई नहीं था।

“आज कल के लोग भी ना! इतने पढ़े लिखे होने के बाद भी लड़कियों को इस तरह मरने के लिए छोड़ देते है। खुद तो बच्चों को मरने के लिए छोड़ जाते है और हमसे उम्मीद करते हैं कि हम उन्हे पेलेंगे।”

वो औरत एक NGO की ऑनर थी। उसके पास नूर जैसी कई सारी लड़कियां थी जिन्हे उनके घर वालो ने छोड़ दिया था और कई सारे ऐसे बच्चे भी थे जिनका अब इस दुनियाँ में कोई नहीं था। वो औरत गुस्से में बड़बड़ाते हुए वापस अंदर चली जाती हैं।

“इसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं था नूर! तुम्हारे लिए कई लोग इंतज़ार कर रहे है। उनके लिए तुम्हे नालंदा लौटना होगा।” उस औरत के पेट में एक तिलस्मी खंजर था जिससे लगाता खून बहे जा रहा था। नूर वहाँ तक पहुँचाने के बाद वो अपनी आँखे बंद करती हैं और एक झटके से उस खंजर को निकाल लेती है।

एक तेज़ चीख के साथ उसके शरीर से वो खंजर निकल जाता है और साथ ही साथ उस औरत के शरिर से जान भी। बारिश की बुंदो के बीच उस औरत का शरीर पंखुड़ियों मे बट कर हवा में बिखर जाता है और उसका कोई अवशेष शेष नहीं रहता। जैसे वहाँ कभी कोई था ही नहीं। वो खून जो अब तक पानी में मिला हुआ था धीरे धीरे अपना रंग बदल कर अचानक ही गायब हो जाता है।

सब कुछ पहले जैसा होने के बाद एक आदमी काला कोट पहने और अपना मुह ढक कर उस गली में आता है। वहाँ किसी को ना पा कर वो फिर अगली गली में चला जाता है। ये वही शख़्स था जिससे नूर की माँ भाग रही थी और जिससे वो नूर को बचाना चाहती थी।

“यादवी! कौन है दरवाजे पर?” घर के अंदर वाले कमरे से एक आदमी की आवाज़ आती हैं। यादवी नूर को अपनी गोद में ले कर अंदर कमरे में चली जाती हैं और अंदर जाते हुए कहती हैं, “एक और बेसहारा बच्ची! जिसे उसे उसके अपनों ने छोड़ दिया है। पता नहीं हमारा समाज कब बदलेगा राघव?”

वो शख़्स जिसका नाम राघव था यादवी की बात सुन कर tv बंद कर देता है और रिमोर्ट साइड में रखते हुए उस बच्ची को अपनी गोद में ले लेता है।

“ये तो भीगी हुई है! पहले हमें इसके कपड़े बदलने होंगे वरना ये बीमार हो जायेगी।”

“ह्म्म! तुम बैठो मै इसके लिए कपड़े ले कर आती हुं।” ये कहते हुए यादवी अलमारी की ओर चली जाती हैं। उसे अलमारी में सूती दुपट्टा मिलता है जिसे ले कर वो वापस राघव के पास आती हैं।

“ये लो!”

“मै इसका क्या करू?”

“लाओ उसे मुझे दो!” यादवी जैसे ही नूर के ऊपर से उसकी चादर हटाती है उसे वो घुंघरू दिखाई देता है जो नूर की माँ ने वहाँ रखा था।

“ये क्या है?” राघव जैसे ही उस घुंघरू को उठाने जाता है यादवी उसका हाथ पकड़ते हुए उसे रोक देती है और फिर मुस्कुराते हुए कहती हैं, “इसका नाम नूपुर है! नूपुर बैरागी!”

“और ये तुम्हे कैसे पता चला? ये घुंघरू देख कर?” राघव पूछता है।

यादवी मंद मंद मुस्कुराते हुए अपना सिर हिला देती है और उस घुंघरू को अपने कोट की जेब में रख देती हैं। नूर के कपड़े बदलने के बाद यादवी उसे आराम से पालने में सुला देती हैं और जब वापस राघव के पास आती हैं तब राघव धीमी आवाज़ मे उससे पूछता है,

“अब बताओगी भी! तुम्हे उसका नाम कैसे पता है? तुम जानती हो वो किसकी बेटी है?”

“नहीं! मै नहीं जानती।”

“लेकिन तुमने कहा की उसका नाम नूपुर है! नूपुर बैरागी! तुम उसका नाम कैसे जानती हो?”

यादवी एक लंबी सांस लेते हुए राघव के कंधे पर हाथ रखती है और धीरे से कहती हैं, “मैने क्या कहा ये ज़रूरी नहीं है। ज़रूरी ये है कि अब हम जनाते है कि नूपुर उन बच्चों में से नहीं है जिनके घर वालो ने उन्हे छोड़ दिया है।”

“अब इसका क्या मतलब है? नूपुर को भी तो कोई हमारे दरवाजे पर ही छोड़ कर गया है ना। यादवी तुम क्या कह रही हो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। प्लीज़ मुझे समझाओगी?”

“तुम्हे मुझ पर यकीन है ना?”

“खुद से भी ज्यादा! मुझे तुम पर यकीन कैसे नहीं होगा? तुम जान हो मेरी।”

“तो फिर यकीन करो! सवाल नहीं। आज से नूपुर हमारे साथ रहेगी। इसी घर में!”

“ठीक है! अगर तुम यही चाहती हो तो मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है। नूपुर यहाँ रह सकती है।”

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